
*मायके आई बेटियां!*
लेख – श्वेता राज गोरखपुरी
बड़े दिनों बाद मायके आई बेटियां घर की राह में मिलने वाले पेड़ पौधों को भी स्नेह भरी निगाहों से देखती हैं।
चौराहे पर, सड़कों पर, नई बनी दुकानों को, मकानों को देखती हुई पुरानी यादें, अपने समय के निशानों को खोजती हैं।
खेत, खलिहानों, पुराने बरगद, ठूंठ हो गए मिठौवा आम के पेड़, कच्ची पगडंडी, छोटी पुलिया , गड़हिया तक को आंख भर निहार कर आंखों में भर लेना चाहती हैं।
गांव किनारे पहुंचते ही डीह बाबा, काली माई के चौरा को सर नवाती, अंचरा से गोड़ धरती सारे गांव की सुख शांति की मनौती करती हैं।
राह में मिले शिवनाथ काका इस बार कुछ ज्यादा ही बूढ़े लग रहे थे। अपने दुआर पर खटिया पर बैठी आजी दूर से ही माथे पर एक हाथ धरकर अपनी कमजोर हो गई आंखो से चिन्हने (पहचानने) की कोशिश कर रही थी उनको देखकर बिटिया राह में ही उतर जाती हैं और बड़े प्रेम से उनको अंकवार (गले लगकर)देकर हाल पूछती हैं तो आजी भावुक हो कर मुंह भर भर आशीष देती हुई गीली हुई आंखे अंचरा से पोंछ कर कहती हैं कि.. बस बिटिया तुम सबका अपने घरे रचा बसा देखकर जी रहे हैं! बाकी प्रभु की इच्छा! कहकर ऊपर आसमान को देखकर हाथ जोड़ लेती हैं।
चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी लेने आई बगल वाली भौजी (भाभी) देखकर लपक कर आई अंकवार देकर (गले मिलकर) अंचरा से गोड़ धरकर (आंचल से पैर छूकर) हाल चाल पूछने लगी _बच्ची अबकी बहुत दिन बाद आई हो! अपने भईया लोगन कय यादि नाही आवत रहा का? जल्दी अवतिव नाही (भाई लोग की याद नही आ रही थी जो जल्दी नही आती हो) कहकर चुहल करने लगी।
पैदल ही गांव के बीच से घर की ओर चली तो रिश्ते में लगने छोटे छोटे भाई भतीजे देखकर आ आकर पैर छूने लगे।
सारे गांव वालो से मिलते भेटाते बिटिया घर पहुंचती हैं तो मां दूर से देखकर ही रसोई में जाकर मुट्ठी भर पिसान (आटा) लाकर तमाम देवी देवता को मना कर बिटिया की बलाएं उतार कर आटा नीम के पेड़ की जड़ में चढ़ा आती हैं।
बड़े दिनों बाद घर आई बिटिया को मां बड़े स्नेह से अपने अंक में समा लेना चाहती हैं।
मां बिटिया का मुंह निहारती जाती हैं कि अबकी बार लाड़ो काफी कमजोर लग रही हैं और बिटिया रानी अपने घर, दुआर की दरों दीवार को निहारने में लगी हुई हैं।
हर कमरे में घूम घूम कर अपने बचपन और किशोरावस्था में बिताए गए पलों को जीना चाहती हैं।
अरई बिरवा (गृह वाटिका)घूम घूम कर देखती हैं…
मां ! अबकी बार नेनुआ न बोई हो? कोहड़ा में बहुत बतिया लगी है लगता है कि अबकी बहुत कोहड़ा लगेगा!
मां कहतीं हैं कि लाड़ो! दूर से आई हो तनिक सुस्ता लो!
लेकिन मायके आई बेटियों को थकान कहां लगती है?
यही तो वो जगह है जहां पहुंच कर वो सारे तनाव भूल जाती हैं, जहां उन्हें बडे़ सुकून वाली गहरी नींद आती है।
सच में मां की गोद और मायके से बड़ा सुख और सुकून कहीं नहीं मिलता है।