*सम्पादकीय*
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾
*हिचकियां आती है तो पानी पी लेता हूं*!!
*अब वो वहम छोड़ दिया है की कोई याद करता है*!!
समय के साथ सब कुछ बदल जाता है। विधाता ने कायनात में इस तरह की व्यवस्था कर रखा है कि समय पाकर आस्था भी बदल जाती है।जिसके सानिध्य में जीवन का हर पल परवरिश पाकर आत्मबल पैदा किया मायावी दुनियां के हर मोड़ पर सबकुछ छोड़कर ज़िन्दगी जीने की कला सिखाया ,गिरकर सम्हल जाने का हूनर बताया वहीं जब सफर की तंग राहों में पहुंचा तब अपनों के बीच बेगाना होकर रह गया! जिनके दम पर मंज़िल के तरफ हरकदम बेखौफ आगे कभी बढ़ते रहे वहीं जब बेदम हुआ तो अपनों के खौफ से ग़म की वर्षांत में भीगकर नम आंखों को लिए वक्त की चोट के लिए मरहम की तलास में भटकने लगा!वाह रे मालिक गजब तेरी रज़ा है!जिसके लिए सारा जीवन समर्पित किया, जिनके लिए हर खुशी कुर्बान कर स्वाभिमान के साथ हर इम्तिहान में बिजय हासिल कराता रहा ,वहीं आज बेचारा बनकर तन्हाई के आलम में गुजरे लम्हों को याद कर मालिक से मौत की फरियाद कर रहा है!ज़िन्दगी की हकीकत तो यही है हर किसी को इसी धरती पर कर्म फल को भोगना ही है!चाहे कोई भी हो! प्रारब्ध के पारितोषिक के साथ ही पल पल गुजरते लम्हों में हुई हर खता का हिसाब चुकता करना ही करना है!मतलब परस्ती की बस्ती में हर कोई अपनी हस्ती के अभिमान में मगरूर होकर झूठे स्वाभिमान के लिए भविष्य को कुर्बान कर रहा है?वक्त का खेल देखिए साहब! जब जरूरत थी तब हर हसरत को पूरा करने के लिए बिना गफलत बिना मोहलत वहीं सख्स तिमारदार था जो वृद्धा आश्रम की तन्हाई भरी कोठरी मे आज बीमार है।लाचार है! मगर उसके लिए कोई भी नहीं अपना है! कोई भी नहीं फरमा बरदार है!किस काम आई वह धन दौलत!किस काम आया झूठा मान सम्मान स्वाभिमान!किस काम आया जीवन भर की कमाई! सभी साथ छोड़ दिए भाई,!ज़िन्दगी की राहों में रंजोगम के मेले है कल भी अकेला था आज भी अकेले हैं! बस यही सच लोग स्वीकार नहीं कर पाते! स्वार्थ कि बस्ती में लगे माया के मेला में चकाचौंध देखकर कर सब कुछ भूल जाते हैं!ख्यालों की दुनियां से बाहर तो तब निकलते जब उम्मिदो के बादल बिना वर्षांत किए सामने से निकलने लगते हैं।चारों तरफ बीरानी का मंजर होता है! हर तरफ अपनत्व का आडम्बर होता है! मगर वास्तविकता के धरातल पर सच यही है कोई नहीं रहबर होता है!वहीं शख्स जार जार रोया है जो कभी सदाबहार होने का स्वप्न देखा करता था। वक्त रहते सम्हल जाओ ये मगरूर याचक!तेरा यहां कोई नहीं! इन्सानियत के राह पर कुछ कदम तो चल गरीब असहाय लाचार पर रहम तो कर साथ तेरे बस तेरा किरदार ही जायेगा!तू मालिक नहीं इस जहां का किरायेदार है!जाते जाते तू सब कुछ यहीं छोड जायेगा! फिर किस मुगालते में हो सच तो सच है।जीते जी तो उसका सम्मान नहीं कर सका! मरने पर दिखावा! दिखावे का पछतावा! एक दिन तू भी इसी राह का राही होगा!सबका मालिक एक ऊं साई राम🙏🏾🙏🏾
जगदीश सिंह सम्पादक राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत 7860503468।