
यह कहानी अवश्य पढ़िए।
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एक *चूहा* एक कसाई के घर में बिल बना कर रहता था।
एक दिन *चूहे* ने देखा कि उस कसाई और उसकी पत्नी एक थैले से कुछ निकाल रहे हैं।
चूहे ने सोचा कि शायद कुछ खाने का सामान है।
उत्सुकतावश देखने पर उसने पाया कि वो एक *चूहेदानी* थी।
ख़तरा भाँपने पर उस ने पिछवाड़े में जा कर *कबूतर* को यह बात बताई कि घर में चूहेदानी आ गयी है।
कबूतर ने मज़ाक उड़ाते हुए कहा कि मुझे क्या?
मुझे कौनसा उस में फँसना है?
निराश चूहा ये बात मुर्गे को बताने गया।
मुर्गे ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा…
जा भाई..
ये मेरी समस्या नहीं है।
हताश चूहे ने बाड़े में जा कर *बकरे* को ये बात बताई…
और बकरा हँसते हँसते लोटपोट होने लगा।
उसी रात चूहेदानी में खटाक की आवाज़ हुई,
जिस में एक ज़हरीला *साँप* फँस गया था।
अँधेरे में उसकी पूँछ को चूहा समझ कर उस कसाई की पत्नी ने उसे निकाला और साँप ने उसे डस लिया।
तबीयत बिगड़ने पर उस व्यक्ति ने हकीम को बुलवाया।
हकीम ने उसे *कबूतर* का सूप पिलाने की सलाह दी।
कबूतर अब पतीले में उबल रहा था।
खबर सुनकर उस कसाई के कई रिश्तेदार मिलने आ पहुँचे जिनके भोजन प्रबंध हेतु अगले दिन उसी मुर्गे को काटा गया।
कुछ दिनों बाद उस कसाई की पत्नी सही हो गयी, तो खुशी में उस व्यक्ति ने कुछ अपने शुभचिंतकों के लिए एक दावत रखी तो बकरे को काटा गया।
चूहा अब दूर जा चुका था, बहुत दूर ……….।
_अगली बार कोई आपको अपनी समस्या बतायेे और आप को लगे कि ये मेरी समस्या नहीं है, तो रुकिए और दुबारा सोचिये।
_हिन्दू समाज का कोई भी सदस्य, कोई भी व्यक्ति, देश में अथवा विदेश में हो, कश्मीर, केरल, बंगाल, असम, मेरठ अथवा कैराना में कहीं भी हो।
वह आपके समाज का एक अभिन्न अंग हैं।
आप मत भूलना कि आज आप दिल्ली, हरियाणा, मध्य प्रदेश आदि में हो तो आपको कश्मीर या केरल से कोई मतलब नहीं हैं।
आज वहां का हिन्दू नागरिक खतरे में है तो कल को आप भी हो सकते हैं।
सही मायने में तो पूरा हिंदी समाज खतरे में है।
ईमानदारी से आप अपने मन में एक बार सोचिये कि वैदिक धर्म, प्राचीन ऋषि मुनियों की विरासत, श्री राम और श्री कृष्ण की इस संस्कृति, इस विचारधारा की रक्षा करने में आपका क्या योगदान हैं।
आपका जितना सामर्थ्य है उसके अनुपात में आप हिन्दू/वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार अथवा रक्षा के लिए क्या करते हैं?
क्या आपको नहीं लगता कि आपको अपने धर्म/ अपने समाज के लिए कुछ करना चाहिए?
अगर हाँ तो आप चिंतन करना आरम्भ कीजिये।
अपने योगदान देना आरम्भ कीजिये।
आप अपनी क्षमता अनुसार अपना योगदान दीजिये।
अपने कर्तव्य का निर्वाहन किजिये ।
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