एक निर्धन व्यक्ति था। वह नित्य भगवान विष्णु और माँ लक्ष्मी की पूजा करता।
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एक बार दीपावली के दिन भगवती लक्ष्मी की श्रद्धा-भक्ति से पूजा-अर्चना की। कहते हैं उसकी आराधना से माँ लक्ष्मी प्रसन्न हुईं।
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वह उसके सामने प्रकट हुईं और उसे एक अंगूठी भेंट देकर अदृश्य हो गईं। अंगूठी सामान्य नहीं थी।
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उसे पहनकर जैसे ही अगले दिन उसने धन पाने की कामना की, उसके सामने धन का ढेर लग गया।
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वह ख़ुशी के मारे झूम उठा। इसी बीच उसे भूख लगी, तो मन में अच्छे पकवान खाने की इच्छा हुई। कुछ ही पल में उसके सामने पकवान आ गए।
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अंगूठी का चमत्कार मालूम पड़ते ही उसने अपने लिए आलीशान बंगला, नौकर-चाकर आदि तमाम सुविधाएं प्राप्त कर लीं।
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वह भगवती लक्ष्मी की कृपा से प्राप्त उस अंगूठी के कारण सुख से रहने लगा। अब उसे किसी प्रकार का कोई दु:ख, कष्ट या चिंता नहीं थी। नगर में उसका बहुत नाम हो गया।
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एक दिन उस नगर में जोरदार तूफ़ान के साथ बारिश होने लगी। कई निर्धन लोगों के मकानों के छप्पर उड़ गए।
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लोग इधर-उधर भागने लगे। एक बुढ़िया उसके बंगले में आ गई।
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उसे देख वह व्यक्ति गरजकर बोला- ‘ऐ बुढ़िया कहां चली आ रही है बिना पूछे।’
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बुढ़िया ने कहा, ‘कुछ देर के लिए तुम्हारे यहां रहना चाहती हूं।’ लेकिन उसने उसे बुरी तरह डांट-डपट दिया।
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उस बुढ़िया ने कहा, ‘मेरा कोई आसरा नहीं है। इतनी तेज बारिश में कहां जाऊंगी? थोड़ी देर की ही तो बात है।’
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लेकिन उसकी किसी भी बात का असर उस व्यक्ति पर नहीं पड़ा।
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जैसे ही सेवकों ने उसे द्वार से बाहर किया, वैसे ही जोरदार बिजली कौंधी। देखते ही देखते उस व्यक्ति का मकान जलकर खाक़ हो गया।
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उसके हाथों की अंगूठी भी गायब हो गई। सारा वैभव पलभर में राख के ढेर में बदल गया।
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उसने आंख खोलकर जब देखा, तो सामने लक्ष्मीजी थीं, जो बुढ़िया कुछ देर पहले उसके सामने दीन-हीन होकर गिड़गिड़ा रही थीं, वही अब लक्ष्मीजी के रूप में उसके सामने मंद-मंद मुस्कुरा रही थीं।
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वह समझ गया उसने बुढ़िया को नहीं, साक्षात लक्ष्मीजी को घर से निकाल दिया था। वह भगवती के चरणों में गिर पड़ा।
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देवी बोलीं, ‘तुम इस योग्य नहीं हो। जहां निर्धनों का सम्मान नहीं होता, मैं वहां निवास नहीं कर सकती।
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यह कहकर लक्ष्मीजी उसकी आंखों से ओझल हो गईं।
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🌹जय जय मां लक्ष्मी🌹