
युवाओं की जिंदगी पर मंडराता संकट : परिवार और समाज की जिम्मेदारी
— संतोष नारायण बरनवाल गोरखपुर
आज का समाज एक गम्भीर मोड़ पर खड़ा है आए दिन ऐसी घटनाएं सुनने और देखने को मिल रही है, जो दिल को झकझोर देती है, कभी आत्म हत्या तो कभी सड़क हादसा में युवा और युवतियां काल के गाल में समा रहे हैं, आखिर ऐसा क्यों हो रहा है
असली समस्या कहाँ है?
आज के दौर में युवाओं में धैर्य की कमी दिख रही है। छोटी-सी परेशानी भी उन्हें बहुत बड़ी लगती है। लेकिन हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि इसकी जड़ें हमारे परिवार और समाज की व्यवस्था में हैं।
परिवार में संवाद की कमी : आजकल के घरों में मेल-मिलाप और बातचीत कम हो गई है।
गार्जियन की जिम्मेदारी : पहले घर में शाम को परिवार एक साथ बैठकर दिनभर की बातें करता था। बुजुर्ग अपने अनुभव और संस्कार साझा करते थे। लेकिन आज बहुत से गार्जियन काम के बाद थककर या नशे में घर आते हैं और बच्चों से बात नहीं करते।
बुजुर्गों से दूरी : बुजुर्गों को सुनने और उनसे सीखने का समय अब बहुत कम हो गया है, जिससे नई पीढ़ी दिशा-भ्रमित हो रही है।
यही वजह है कि आज के युवा अपने मन की बातें किसी से साझा नहीं कर पाते और अकेलापन उन्हें गलत रास्ते पर ले जा रहा है।
समाधान की ओर कदम
हमें समाज और परिवार के स्तर पर कुछ गंभीर बदलाव लाने होंगे:
1. परिवारिक संवाद पुनः शुरू करें – हर दिन शाम को परिवार एक साथ बैठे, बच्चे अपनी बात रखें और माता-पिता ध्यान से सुनें।
2. बुजुर्गों का महत्व बढ़ाएं – बुजुर्गों के अनुभव युवाओं के लिए अमूल्य धरोहर हैं। उनके साथ बैठने-बतियाने से युवाओं में धैर्य और जीवन जीने की समझ आती है।
3. गार्जियन की जिम्मेदारी – माता-पिता केवल भौतिक सुविधाएँ ही न दें, बल्कि भावनात्मक सहारा भी बनें। नशे से दूर रहें और बच्चों को समय दें।
4. सामुदायिक पहल – युवाओं के लिए संवाद, खेल-कूद, और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएं ताकि वे सकारात्मक माहौल में विकसित हों।
5. खास करके युवाओं से यह
अपील है कि नशा से दूरी बनाएं
और बुजुर्गों से बात करें मोबाइल
में गेम कम खेले रियल गेम ज्यादा
खेलें मॉर्निंग वॉक या मॉर्निंग में
खेल कूद पर ज्यादा ध्यान दें ।
निष्कर्ष
युवाओं का जीवन केवल उनका व्यक्तिगत जीवन नहीं है, बल्कि पूरे परिवार और समाज की पूंजी है। यदि हम चाहते हैं कि हमारे गांव, समाज और देश का भविष्य उज्ज्वल बने, तो हमें अपने परिवारों में संवाद, संस्कार और आपसी मेल-मिलाप को फिर से जीवित करना होगा।
मेरा निवेदन है कि हम सब मिलकर एक ऐसा वातावरण बनाएं, जहाँ बच्चे अपने गार्जियन और बुजुर्गों से खुलकर बात कर सकें। तभी हम आत्महत्या और दुर्घटनाओं जैसी दुखद घटनाओं को रोक पाएंगे।
✍️ संतोष नारायण बरनवाल गोरखपुर 🙏🙏🙏🙏🙏