
#एनिवर्सरी का दिन था। #पति_पत्नी एक-दूसरे को #नंगा कर रहे थे। कई लोग उनकी #एनिवर्सरी मनाने के लिए उनके घर आए हुए थे। इतने लोगों के बीच वे एक-दूसरे का मज़ाक बना रहे थे, लेकिन बात कब बिगड़ने लगी किसी को पता ही नहीं चला। धीरे-धीरे मज़ाक एक-दूसरे की बेइज्जती तक पहुंच गया। अब वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने लगे।
पार्टी में आए हुए बाकी लोग सिर्फ तमाशा देखकर खुश हो रहे थे। किसी ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की, उल्टा सब हंस रहे थे। लेकिन हद तो तब पार हो गई जब पत्नी ने यह कह दिया
“तुम्हारी औकात ही क्या है मेरे सामने !”
यह सुनकर पूरा माहौल सन्नाटे में बदल गया। पति निशब्द हो गया। जो लोग पास में हंस रहे थे, वे सब एकदम से चुप हो गए। इस पूरी शांति के बीच एक महिला सामने आई। वह महिला उस पत्नी रश्मि की सहेली थी। पति का नाम राहुल और पत्नी का नाम रश्मि था। सहेली ने रश्मि का हाथ पकड़ा और बोर्ड के पास ले जाकर उसे एक मार्कर थमा दिया।
रश्मि ने पूछा
“यह क्या है? मुझे यहां क्यों लाई हो? मुझे कुछ लिखना है क्या?”
सहेली बोली
“हां, एक काम करो। तुम बोर्ड पर 15 ऐसे लोगों के नाम लिखो जो तुम्हारे सबसे करीब हैं।”
रश्मि ने नाम लिखना शुरू किया – माता-पिता, सास-ससुर, पति, बेटा, अन्य रिश्तेदार और कुछ खास दोस्तों के नाम।
अब सहेली बोली
“इनमें से पांच ऐसे नाम हटा दो, यह सोचकर कि ये लोग तुम्हारी ज़िंदगी से हमेशा के लिए चले गए।”
रश्मि ने दोस्तों के नाम हटा दिए। नाम हटाते-हटाते उसके माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखने लगीं, लेकिन उसने ज्यादा नहीं सोचा।
सहेली ने फिर कहा
“ठीक है, अब चार नाम और हटा दो।”
पूरा माहौल बदल गया। सबके मन में सवाल था कि आखिर यह हो क्या रहा है। रश्मि ने रिश्तेदारों के नाम हटा दिए। अब बोर्ड पर सिर्फ माता-पिता, सास-ससुर, पति और बेटा बचे थे। सबकी नज़रें बोर्ड पर थीं कि आगे क्या होने वाला है।
सहेली के कहने पर रश्मि को दो नाम और हटाने थे। भावुक चेहरे और माथे पर पसीने के साथ उसने सास और ससुर का नाम हटा दिया और बोली
“उन मां-बाप का नाम मैं नहीं हटा सकती जिन्होंने मुझे जन्म दिया है। प्लीज़ मुझे माफ़ करना।”
राहुल यह सब देख रहा था, लेकिन कुछ नहीं बोला।
सहेली बोली –
“अब बचे माता-पिता, पति और बेटा। रश्मि, एक काम करो… दो और नाम हटा दो।”
रश्मि रोने लगी
“यह एनिवर्सरी का दिन है और यह सब क्यों करवा रही हो
मुझसे !”
लेकिन सहेली नहीं मानी
“नाम तो हटाने ही पड़ेंगे।”
रश्मि ने आंखों में आंसू लिए, दिल पर पत्थर रखकर अपने माता-पिता का नाम हटा दिया और बोली
“मुझे भगवान कभी माफ़ नहीं करेंगे।”
अब बोर्ड पर सिर्फ पति और बेटा रह गए थे। सहेली ने कहा
“इन दोनों में से किसी एक को चुनना होगा, रश्मि। अगर इनमें से किसी एक का नाम हटाना पड़े तो कौन होगा?”
रश्मि की आंखों से आंसू बह रहे थे। वह बोली
“प्लीज़ यह सब बंद करो।”
लेकिन सहेली नहीं मानी
“उठो रश्मि, और एक नाम हटाओ।”
करीब 15 मिनट सोचने के बाद रश्मि ने आंसुओं के साथ अपने बेटे का नाम हटा दिया।
सब लोग शॉक्ड रह गए कि एक मां अपने बेटे का नाम कैसे हटा सकती है। राहुल भी स्तब्ध रह गया।
सहेली ने पूछा
“ऐसा क्यों किया? एक मां होकर अपने बेटे का नाम हटा दिया और पति को चुना?”
रश्मि बोली
“माता-पिता, सास-ससुर आज नहीं तो कल भगवान के पास चले जाएंगे। यह कुदरत का नियम है। बेटा शायद अपनी शादी के बाद मुझसे अलग हो जाएगा। हो सकता है कि मुझसे दूर हो जाए, शायद मेरी सेवा करे या घर से निकाल भी दे। आज की पीढ़ी का क्या भरोसा ! लेकिन राहुल, जो मेरा पति है, वह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा। आखिरी सांस तक मेरा साथ देगा, मेरी रक्षा करेगा, मेरी देखभाल करेगा। मेरी हर ज़रूरत वही पूरी करता है, मेरी हर ज़िद वही पूरी करता है।”
राहुल की आंखों से कब आंसू बहने लगे, उसे खुद भी पता नहीं चला। पूरा माहौल बदल गया। वहां मौजूद सभी लोग रो पड़े।
सहेली बोली
“जिस पति से तुम्हें इतनी उम्मीद है, उसी पति की औकात की बात तुमने सबके सामने कही थी।”
रश्मि दूर से ही रो पड़ी और राहुल से माफी मांगी। राहुल ने भी रश्मि से माफी मांगी। उस दिन दोनों को एक-दूसरे की कीमत का
एहसास हुआ।
ऐसी एनिवर्सरी शायद ही पहले किसी ने मनाई होगी। सहेली ने रश्मि को सही रास्ता दिखाया और परिवार को यह सिखाया कि रिश्ते मज़ाक या तमाशे के लिए नहीं होते। बाकी सब तो बस झगड़े का तमाशा देखने के इंतजार में रहते हैं।
आखिर में रश्मि ने राहुल से कहा
मैं रूठूं तो तुम मना लेना, तुम रूठो तो मैं मना लूंगी। यह जिंदगी का सफ़र यूं ही गुजर जाएगा…!!!