
*एक किस्सा ऐसा भी……….*
ऑफिस में एक बंदा था – कामकाज से उसका वैसे ही रिश्ता था जैसे सांप और नेवले का ।
लेकिन बॉस पर मक्खन लगाने में उसने पीएचडी कर रखी थी।
ऑफिस की फाइलें छोड़कर वह बॉस के सब प्राइवेट काम करता था –
बॉस के बच्चे की होमवर्क कॉपी लिखना
बॉस की सास को मंदिर छोड़ आना
बॉस की कार का टायर बदलना
बॉस के कुत्ते का बर्थडे ऑर्गनाइज करना।
तो जाहिर है, बॉस की नजरों में वही सुपरस्टार था।
बाकी बेचारे कर्मचारी दिन-रात ऑफिस का असली काम करके भी सिर्फ डाँट खाते रहते।
एक दिन खबर आई कि बॉस के पिताजी का स्वर्गवास हो गया।
पूरा स्टाफ दुखी चेहरा बनाकर उनके घर पहुँच गया।
सबने मिलकर संस्कार की तैयारी शुरू की, लेकिन मजेदार बात ये थी कि
“वो चापलूस कर्मचारी” कहीं दिखा ही नहीं।
सब लोग आपस में फुसफुसाने लगे –
“अरे, आज तो असली मौका था चमचागिरी का… ये बंदा कहाँ गया?”
खैर, बॉडी को श्मशान ले जाया गया।
लेकिन वहाँ सीन देखकर सबके होश उड़ गए –
पहले से ही 20 शव लाइन में पड़े थे!
हर दाह-संस्कार में एक-एक घंटा लग रहा था।
मतलब बॉस के पिताजी का नंबर आता-आता सूरज भगवान अपने घर चले जाते यानि सूर्यास्त हो जाता ।
बॉस का चेहरा लाल टमाटर जैसा हो गया।
तभी अचानक… कतार में पड़े शवों में से तीसरा शव उछलकर बैठ गया! लोगों के तो प्राण उड़ गए…
कई तो डर के मारे श्मशान की दीवार फाँदकर भागे।
लेकिन जब गौर से देखा, तो वह कोई “भूत” नहीं बल्कि वही चमचागिरी का मास्टर था।
उसने हाथ जोड़कर बोला –
“सर, सुबह से आपके घर नहीं आ पाया था…
क्योंकि जैसे ही सुना कि पिताजी गुजर गए,
मैंने सोचा असली काम यही है कि श्मशान का नंबर एडवांस में बुक कर दूँ।
सुबह 6 बजे से ही यहाँ लाश बनकर लेटा हुआ हूँ,
ताकि आपके पिताजी को बिना वेटिंग के वीआईपी सेवा मिल जाए।”
सबके मुँह खुले के खुले रह गए।
बॉस कभी उसकी “निष्ठा” देखकर गदगद होते,
तो कभी बाकी कर्मचारियों को घूरते जैसे कह रहे हों –
“सीखो कुछ… यही है असली डेडिकेशन!”