
सासू मां ने दिवाली के लिए तीन साड़ियां लाई।
दो अपनी बहुओं के लिए और एक अपनी बेटी के लिए।
क्योंकि सासू मां के दो बेटे और एक बेटी थी।
बहुओं को अपनी-अपनी साड़ियां बहुत पसंद आई।
पर उन्हें यह बात बहुत खल रही थी, की सासू मां हर बार त्यौहार में बहू के साथ-साथ बेटी के लिए भी कपड़े लाती हैं।
इस बार उन्होंने बोली दिया दीदी ,की शादी को इतने साल हो गये। आप अभी तक दीदी को त्योहार पर कपड़े क्यों देती हैं।
सासु मां ने जवाब दिया हां तो मेरे तीन बच्चे हैं।
दो के लिए मैं लेकर आऊं और अपनी बेटी के लिए साड़ी ना लाऊं। मेरे जीते जी तो ऐसा नहीं होगा।
इस पर बड़ी बहू ने बोला, लेकिन यह सब तो शुरू शुरू में होता है। शादी के इतने सालों बाद तक कौन देता है?
सासू मां ने बोला, मैं देती हूं ,यह तो मेरी मर्जी है, और मेरे जीते जी मैं देती रहूंगी।
छोटी बहू ने बोला, हमें तो हमारे मायके से अब नहीं मिलता।
सासु मां ने बोला, वह तुम्हारे माता-पिता जाने।
मुझे उससे क्या?
मैं और पापा जब तक जीवित है, जैसे मैं तुम दोनों को दूंगी, अपनी बेटी को भी त्यौहार दूंगी।
लेकिन दोनों बहू आज सासू मां से बहस के मूड में थी।
क्योंकि उन्हें पसंद नहीं था, की सासू मां अपना एक पैसा भी अपने बेटी के ऊपर खर्च करें।
गुस्से में उन्होंने बोला, वाह मम्मी जी रहती हमारे साथ है, खाती हमारा है ,और चिंता बेटी की रहती है।
क्या करती है आपका बेटी आपका?
सासू मां और ससुर जी दोनों ने एक दूसरे को देखा।
ससुर जी को बहुत जोर का गुस्सा आया।
सासू मां कुछ बोलने जा ही रही थी कि ससुर जी ने उन्हें रोक दिया और बोला,
सुनो ,यह मेरा घर है और यहां वही होगा जो इस घर की मालकिन, यानी कि तुम्हारी सास चाहेगी।
हम तुम्हारे साथ रहते और खाते नहीं, बल्कि तुम हमारे साथ रहते और खाते हो।
हिम्मत कैसे हुई मेरी बेटी के लिए ऐसा बोलने की?
जैसे मेरे दो बेटे हैं वैसे ही मेरी एक बेटी भी है।
औकात नहीं है तुम लोगों की मेरी बेटी के बारे में कुछ भी बोलने की।
इतनी ही दिक्कत है तो अपना बोरिया बिस्तर समेटो और निकलो मेरे घर से।
यह मां-बाप की कमजोरी होती है, कि घर की बहुएं घर की बेटियों से उनका मायका छीन लेती हैं।
यह मां-बाप की गलती होती है, कि बेटे बहू के दबाव में आकर वह बेटियों से दूरियां बना लेते हैं।
लेकिन हम वैसे मां-बाप नहीं है।
हमारे जीते जी हम हमारी बेटी को देंगे भी, और उसका जब दिल करेगा, जितने दिन दिल करेगा, वह अपने मायके में आकर रहेगी भी।
अगर इस घर में रहना है, तो इस घर के मालकिन के हिसाब से रहना होगा, और यह बात याद रखनी होगी, कि जब तक हम जिंदा है, हमारी बेटी को हम देते रहेंगे।
उसके बाद तुम लोग को जो दिल में आए करना, और अगर अभी भी कोई दिक्कत है, तो दरवाजे खुले हैं।
तुम लोग जा सकते हो।
बहुओं को ससुर जी के से ऐसे रौद्र रूप और इतने कड़े जवाब की आशा नहीं थी।
दोनों ने चुपचाप वहां से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी। क्योंकि पता था, अब बहस करने में नुकसान अपना है। ..
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