
14 अगस्त: विभाजन विधि स्मृति दिवस – इतिहास का वह जख्म, जो आज भी हरा है
संवाददाता – कैलाश सिंह महाराजगंज
महाराजगंज,आजादी की खुशियों से एक दिन पहले 14 अगस्त 1947 का दिन भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक ऐसे घाव के रूप में दर्ज है, जिसे भुलाना नामुमकिन है। इस दिन भारत और पाकिस्तान के बीच विभाजन की रेखा खींची गई थी। आज उसी दिन को देशभर में ‘विभाजन विधि स्मृति दिवस’ के रूप में याद किया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में इस दिन को विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी, ताकि उस दौर में हुए भीषण मानवीय त्रासदी को याद रखा जा सके और आने वाली पीढ़ियों को इस बात का एहसास हो कि सांप्रदायिक नफरत और राजनीतिक लालच ने किस तरह करोड़ों लोगों का जीवन तहस-नहस कर दिया था।
विभाजन का काला सच
ब्रिटिश हुकूमत ने सत्ता हस्तांतरण के साथ ही देश को दो हिस्सों – भारत और पाकिस्तान – में बांटने का फैसला लिया। इसके तहत पंजाब और बंगाल के प्रांतों को भी विभाजित कर दिया गया। रेडक्लिफ लाइन खींची गई, जो एक तरफ आजाद भारत की सीमा थी और दूसरी तरफ नए बने पाकिस्तान की। लेकिन यह सीमा केवल नक्शे पर नहीं बनी, बल्कि लाखों परिवारों के दिलों के बीच भी खिंच गई।
मानवीय त्रासदी और पलायन
विभाजन के समय करीब 1 करोड़ 40 लाख लोग अपने पुश्तैनी घर छोड़ने पर मजबूर हुए। हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदाय के लोग अपनी जान बचाने के लिए सीमा पार करने लगे। ट्रेनें लाशों से भरी पहुंचने लगीं, गांव जलाए गए, और हजारों महिलाओं के साथ अमानवीय अत्याचार हुए। अनुमान है कि लगभग 10 से 15 लाख लोग इस विभीषिका में मारे गए।
स्थानीय स्तर पर असर
महाराजगंज, गोरखपुर और आसपास के इलाकों में भी विभाजन की लहर महसूस की गई। कई परिवार पंजाब और सिंध से पलायन कर यहां बस गए। यहां के बुजुर्ग आज भी उन दिनों के दर्द को याद कर भावुक हो उठते हैं। उनकी यादों में खून से सनी गलियां, अपने लोगों से बिछड़ने का गम और नए सिरे से जिंदगी शुरू करने की चुनौती अब भी ताजा है।
संदेश और सीख
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का उद्देश्य केवल उस दर्दनाक इतिहास को याद करना नहीं है, बल्कि लोगों में एकता, भाईचारा और सहिष्णुता का संदेश फैलाना भी है। यह हमें यह सिखाता है कि किसी भी कीमत पर सांप्रदायिक नफरत को बढ़ावा नहीं देना चाहिए, क्योंकि उसका अंजाम केवल तबाही होता है।
सरकारी और सामाजिक कार्यक्रम
इस अवसर पर विभिन्न स्थानों पर फोटो प्रदर्शनियां, संगोष्ठियां और स्मृति सभाएं आयोजित की जाती हैं, जिनमें विभाजन के प्रत्यक्षदर्शी अपनी कहानियां सुनाते हैं। स्कूल-कॉलेजों में निबंध, भाषण और नाटक के जरिए नई पीढ़ी को इस इतिहास से रूबरू कराया जाता है।
निष्कर्ष
14 अगस्त का यह दिन हमें याद दिलाता है कि आजादी की कीमत केवल संघर्ष और बलिदान से ही नहीं, बल्कि लाखों मासूमों के खून और आंसुओं से भी चुकाई गई है। विभाजन की पीड़ा हमें हमेशा एकजुट रहने, नफरत की राजनीति को नकारने और शांति की राह पर चलने के लिए प्रेरित करती है।