हम सभी लोग मेन हॉल में बैठे-बैठे चर्चाएं कर रहे थे तभी मेरी बहन ने मुझसे एक प्रश्न पूछा कि भैया यह बताओ आदमी के बुढ़ापे का सहारा उसकी बेटी होती है या उसका बेटा।
मैंने कहा बहन यह प्रश्न ना करो तो अच्छा है क्योंकि इससे कोई तो खुश होगा किसी को दुख।
तो अन्य सभी लोग जिद करने लगे नहीं नहीं यह बात तो बतानी ही पड़ेगी वह भी विस्तार से
मैने कहा तो फिर सुनो बुढापे का सहारा बेटा या बेटी नहीं- “बहू” होती हैं जैसे कि –
लोगों से अक्सर सुनते आये हैं कि बेटा या बेटी बुढ़ापे की लाठी होती है इसलिये लोग अपने जीवन मे एक “बेटा एवं बेटी” की कामना ज़रूर रखते हैं ताकि बुढ़ापा अच्छे से कटे।
ये बात सच भी है क्योंकि बेटा ही घर में बहु लाता है।
बहु के आ जाने के बाद एक बेटा अपनी लगभग सारी जिम्मेदारी अपनी पत्नी के कंधे पर डाल देता है।
और फिर बहु बन जाती है अपने बूढ़े सास-ससुर की बुढ़ापे की लाठी ।
जी हाँ मेरा तो यही मानना है वो बहु ही होती है जिसके सहारे बूढ़े सास-ससुर अपना जीवन अच्छे से व्यतीत करते हैं।
एक बहु को अपने सास-ससुर की पूरी दिनचर्या मालूम होती है।
कौन कब और कैसी चाय पीते है , क्या खाना बनाना है , शाम में नाश्ता में क्या देना , रात को हर हालत में 9 बजे से पहले खाना बनाना है ।
अगर सास-ससुर बीमार पड़ जाए तो पूरे मन या बेमन से बहु ही देखभाल करती है ।
अगर एक दिन के लिये बहु बीमार पड़ जाए या फिर कही चली जाएं , तो पूरे घर की धुरी हिल जाती है ।
परंतु यदि बेटा 15 दिवस की यात्रा पर भी चला जाये तो भी बहू के भरोसे घर सुचारू रूप से चलता रहता है ।
बिना बहू के सास-ससुर को ऐसा लगता है जैसा उनकी लाठी ही किसी ने छीन ली हो।
वे चाय नाश्ता से लेकर खाना के लिये छटपटा जाएंगे ।
कोई और पूछने वाला उनके पास नही होता ।
क्योंकि बेटे के पास समय नही है और अगर बेटे को समय मिल जाये भी तो वो कुछ नही कर पायेगा क्योंकि उसे ये मालूम ही नही है कि माँ-बाबूजी को सुबह से रात तक क्या क्या देना है ।
क्योंकि बेटे के चंद सवाल है और उसकी ज़िम्मेदारी खत्म…
जैसे माँ-बाबूजी ने खाना खाया ,चाय पियें , नाश्ता किये , लेकिन कभी भी ये जानने की कोशिश नही करते कि वे क्या खाते हैं कैसी चाय पीते हैं ।
ये लगभग सभी घरों की कहानी है ।मैंने तो ऐसी बहुएं देखी है जिसने अपनी सास की बीमारी में तन मन से सेवा करती इसलिये मेरा मानना है कि बहु ही होती हैं बुढ़ापे की असली लाठी।
लेकिन एक बात और सच है कि आप में भी अक्ल होनी चाहिए कि हर वक्त मेरा राजा बेटा मेरी रानी बेटी की रट छोड़ मेरी अच्छी बहु रानी की रट भी लगानी चाहिए।
अतः अपनी बहू में सिर्फ कमिया न ढूंढे, उसकी अच्छाइयों की कद्र करे ।
“आज का संदेश”
बहु की त्याग और सेवा को पहचानिएं
बेटे एवं बेटी से पहले बहु को अपना मानिए
औऱ मेरी बेटी मेरा अभिमान मेरा बेटा मेरा अभिमान कहना भी छोड़ो
गर्व से कहो मेरी बहु मेरा अभिमान… सनातन सेवा समिति
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