
अंतिमदर्शन..
चारों ओर विषैली गंध फैली थी..भीड़ मुँह ढके सारा मंजर चुप चाप देख और सुन रही थी..
परंतु कह कोई कुछ नहीं रहा था..
बस एक दूसरे को शांत नज़रों से देखे जा रहा था…
नगर पालिका की मुर्दा गाड़ी वर्मा जी के दरवाजे पे आकर लगी थी..
किसी ने वर्मा जी की पत्नी के मरने की खबर नगरपालिका को कर रखी थी शायद..
लेकिन वर्मा जी थे जो मान ही नहीं रहे थे..
और न ही स्ट्रेचर ब्वॉय को अंदर कमरे में जाने दे रहे थे..
जहाँ उनकी पत्नी का पार्थिव शरीर पड़ा था..
चलिए चच्चा हटिए…कोई नहीं आने वाला…..
चच्ची को ले जाने देजिए…
मैं ज्यादा देर तक नहीं रूकने वाला…
वैसे भी आज़ बहुत काम है…
लोड भी ज्यादा है…
आज़
स्ट्रेचर ब्वॉय बार बार अपनी घड़ी देख रहा था..
और कहे जा रहा था..
नहीं नहीं….
जरा रूको भाई…
वो आता ही होगा…
अरे विदेश से आ रहा है,आने में थोड़ा समय तो लगेगा ही न …?
उसके रूखे व्यवहार के वावजूद वर्मा जी विनम्रतापूर्वक स्ट्रेचर ब्वॉय से विनती कर रहे थे…
थोड़ी देर और रूक जाओ….
साथ मे बेटी और बच्चें भी हैं…
कम से कम उन्हें अपनी माँ के अंतिमदर्शन तो कर लेने दो…
आखिर तुम भी किसी के बेटे हो..
यह कहकर वो व्याकुल नज़रों से दरवाजे की ओर देखने लगे…
वो बार बार दरवाजे की तरफ़ दौड़कर जातें और लौटकर भीतर कमरे में पड़ी अपनी मृत पत्नी के पार्थिव शरीर से लिपट कर रोने लगतें…
देखो अभी तक नहीं आएं सब…
तुम्हें बहुत विश्वास था…
कुछ हो जाए तुम्हारी बेटी तुम्हें नहीं छोड़ सकती..
एक ना एक दिन तो मेरे पास आएगी ही,
आखिर कब तक अपनी माँ से दूर रहेगी..
बेटी को पढाने लिखाने के लिए तुमने तो अपने सारे जेवर तक बेच दिए…
पर देखो तुम्हारे जीते जी तो नहीं आई वो..
तुम्हारे मरने की खबर सुनकर भी लगता नहीं कि वो आ रही..
वो अपने बेटे और बेटी का बिगत दो दिन से इंतजार कर रहें थें…
लेकिन अभी तक वो लोग आए नहीं थे…
वर्मा जी ने बेटे / बेटी को जबसे खबर किया था
कि उनकी माँ अब इस दुनिया में नहीं रही..
उस खबर के बाद न तो बेटे का फोन लग रहा था और न ही बेटी का….
दोनों के फोन लगातार स्विचऑफ बता रहे थे.
हालांकि माँ के मरने की खबर सुनकर बेटे ने कहा था कि वह टिकट लेकर आज शाम ही निकलता हूँ…
कल सुबह तक आ जाऊँगा..
बहू और रास्ते में दीदी भी साथ होगी..
लेकिन अब तक नहीं आया था..
तीन दिन हो गए
अब तक तक तो आ जाना चाहिए था उसे..
और छोटी को.
आखिर कब तक पत्नी के पार्थिव शरीर को इस तरह रोके रखे रहें…
उनकी आत्मा बच्चों को सोच तड़प रही थी…
जिन हाथों ने उँगली पकड़कर उन्हें चलना सिखाया,
जिन काँधों ने बचपन में सहारा दिया,
आज वही माँ बाप बेटे बेटी के लिए जी का जंजाल बन गए थे.
एक बार मुड़कर ताकना तक गँवारा नहीं समझ रहे थे…
दोनों
जिन हाथों को बुढापे में अपने थर्राते पिता के हाथों को थामकर उनका सहारा बनना था…
आज वही बेटा उन्हें बुढापे में मरता छोड़कर विदेश बैठा था..
और बेटी की तो क्या कहें..
कहा जाता है कि एक मां-बाप को सहारे के लिए बेटियां वरदान होती हैं..
एक ही कोख से जन्म लेने वाले दो औलादों में बेटा मां-बाप को ठुकरा सकता है,
लेकिन बेटियां अपने माता-पिता का बुरा कभी नहीं चाहती..
लेकिन आज..
बेटे को छोड़ उनकी बेटी भी उनकी परवरिश को गलत साबित कर रही थी..
वर्मा जी पत्नी का सर गोद में लिए रोए जा रहे.थे..
साथ ही साथ मरी पत्नी से बातें किए जा रहें थे….
उनके मुर्झाए चेहरे पर चिंता और वेदना की लकीरें कोने कोने पसरी थी..
अच्छा हुआ कि तुम मुझसे पहले मर गई….
मैं तो यही सोच कर हलकान और परेशान रहता था..
मेरे बाद तुम्हारा क्या होगा..
मैं हरदम सोचता था कहीं मैं पहले मर गया तो कौन ध्यान रखेगा तुम्हारा….
अब कम से कम तुम्हारी चिंता तो नहीं रहेगी मुझे…
फिर मेरा क्या है..मैं तो यूँ भी जिंदा होकर भी लाश ही हूँ..
और मुझे लाश बनाया है तुम्हारी अंधी ममता ने..
तुम्हारे निश्चल एवं निश्वार्थ प्रेम ने..
जिसका आज किश्त भर रहा हूँ मैं..
कहकर पत्नी को सीने लगा रोने लगें..
तभी स्ट्रेचर ब्वॉय की आवाज ने उनका ध्यान भंग किया….
स्ट्रेचर ब्वॉय लगभग खिसियाहट भरे लहजे में कहने लगा
हटिए भी चाचा..
अब ले जाने दिजिए..
कोई नहीं आएगा…
मुझे ही अपना बेटा समझो..
और चच्ची को ले जाने दो….
वर्मा जी ने भी मानों नियति से हार मान लिया हो जैसे…
उनके न न करते करते भी स्ट्रेचर ब्वॉय कमरे में घूँस गया…
लेकिन अगले ही पल..
आश्चर्य से उसकी कदमें पीछे हो गई….
बिस्तर पर एक नहीं दो मृत शरीर पड़े थे..
सड़ी सिकुड़ी दो लाश..
जिसकी नजरे खिड़की से जाने किसको तक रही थी..
एक बर्मा जी की पत्नी की दूसरी उनकी खुद की..
यह देख स्ट्रेचर ब्वॉय की नज़रे वर्मा जी को ढूँढ रही थी लेकिन वो कहीं नहीं थे..
सच जान और सोच स्ट्रेचर ब्वॉय की रूह काँप गई कि वो इतनी देर से वर्मा जी नहीं बल्की उनकी आत्मा से बाते किए जा रहा था..
इतनी देर वर्मा जी की आत्मा ने उसका रस्ता रोक रखा था…
दूसरी तरफ़ बूढ़े मां-बाप को उनके जवान बच्च्चों के इस तरह मरता छोड़ जाने से पूरे मुहल्ले की आंखें दर्द से छलछला रही थी..
सबकी आँखें नम थी..
हाँ ये अलग बात थी जो किसी ने लाश को छुआ तक नहीं था और न ही उन दोनों के अंतिम स्नान और कर्म की जहमत उठाने की कोशिश की थी..
अकेला स्ट्रेचर ब्वॉय वेदना में डूबा अपना कर्म कर रहा था..
आज वो मुर्दों की बस्ती से दो मुर्दे साथ ले जा रहा था….
श्राद्धकर्म करने के लिए..
क्योंकि और कुछ न सही वर्मा जी का अंतिमदर्शन तो सिर्फ़ उसने ही किया था…
फिर चाहे उनकी आत्मा ही सही..
दोनों की लाश जलाते स्ट्रेचर ब्वॉय मन ही मन सोच रहा था कि कैसे अभागे माता पिता हैं दोनों..