
🔶🔸सुरसा🔸🔶
🔸सुरसा रामायण के अनुसार समुद्र में रहने वाली नागमाता थी।
सीताजी की खोज में समुद्र पार करने के समय सुरसा ने राक्षसी का रूप धारण कर हनुमान का रास्ता रोका था और उन्हें खा जाने के लिए उद्धत हुई थी।
समझाने पर जब वह नहीं मानी
तब हनुमान ने अपना शरीर उससे भी बड़ा कर लिया।
जैसे-जैसे सुरसा अपना मुँह बढ़ाती जाती,
वैसे-वैसे हनुमान शरीर बढ़ाते जाते।
बाद में हनुमान ने अचानक ही अपना शरीर बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुँह में प्रवेश करके तुरंत ही बाहर निकल आये।
सुरसा ने प्रसन्न होकर हनुमान को आशीर्वाद दिया तथा उनकी सफलता की कामना की।
🔸मैनाक का आग्रह
श्रीराम के भक्त हनुमान को आकाश में बिना विश्राम लिए लगातार उड़ते देख कर समुद्र ने सोचा कि यह प्रभु श्रीराम जी का कार्य पूरा करने के लिए जा रहे हैं।
किसी प्रकार थोड़ी देर के लिए विश्राम दिलाकर इनकी थकान दूर करनी चाहिए।
अत: समुद्र ने अपने जल के भीतर रहने वाले मैनाक पर्वत से कहा- ”
मैनाक
! तुम थोड़ी देर के लिए ऊपर उठ कर अपनी चोटी पर हनुमान को बिठा कर उनकी थकान दूर करो।”
समुद्र का आदेश पाकर मैनाक प्रसन्न होकर हनुमान जी को विश्राम देने के लिए तुरन्त उनके पास आ पहुँचा।
उसने उनसे अपनी सुंदर चोटी पर विश्राम के लिए निवेदन किया।
उसकी बातें सुनकर हनुमान ने कहा-
“मैनाक! तुम्हारा कहना ठीक है,
लेकिन भगवान श्रीरामचंद्र जी का कार्य पूरा किए बिना मेरे लिए विश्राम करने का कोई प्रश्र ही नहीं उठता।”
ऐसा कह कर उन्होंने मैनाक को हाथ से छूकर प्रणाम किया और आगे चल दिए।
🔸हनुमान की परीक्षा लेना
हनुमान को तीव्र गति से लंका की ओर प्रस्थान करते देख कर देवताओं ने सोचा कि यह रावण जैसे बलवान राक्षस की नगरी में जा रहे हैं।
अत: इनके बल-बुद्धि की विशेष परीक्षा कर लेना इस समय अत्यंत आवश्यक है।
यह सोचकर उन्होंने नागों की माता सुरसा से कहा-
“देवी सुरसा!
तुम हनुमान के बल-बुद्धि की परीक्षा लो।”
देवताओं की बात सुनकर सुरसा तुरन्त एक राक्षसी का रूप धारण कर हनुमान के सामने जा पहुँची।
उसने उनका मार्ग रोकते हुए कहा- ”
वानरवीर!
देवताओं ने आज मुझे तुमको अपना आहार बनाने के लिए भेजा है।”
उसकी बातें सुनकर हनुमान ने कहा- ”
माता!
इस समय मैं प्रभु श्रीराम के कार्य से जा रहा हूँ।
उनका कार्य पूरा करके मुझे लौट आने दो।
उसके बाद मैं स्वयं ही आकर तुम्हारे मुँह में प्रविष्ट हो जाऊंगा। इस समय तुम मुझे मत रोको, यह तुमसे मेरी प्रार्थना है।”
इस प्रकार हनुमान ने सुरसा से बहुत प्रार्थना की,
लेकिन वह किसी प्रकार भी उन्हें जाने नहीं दे रही थी।
अंत में हनुमान ने क्रुद्ध होकर कहा- ”
अच्छा तो लो तुम मुझे अपना आहार बनाओ।”
🔸सुरसा का आशीर्वाद
हनुमान के ऐसा कहते ही सुरसा अपना मुँह सोलह योजन तक फैलाकर उनकी ओर बढ़ी।
हनुमान ने तुरन्त अपना आकार उससे दोगुना अर्थात 32 योजन तक बढ़ा लिया।
इस प्रकार जैसे-जैसे वह अपने मुख का आकार बढ़ाती गई,
हनुमान अपने शरीर का आकार उसका दोगुना करते गए।
अंत में उसने अपना मुँह फैलाकर 100 योजन तक चौड़ा कर लिया।
तब हनुमान तुरन्त अत्यंत छोटा-सा रूप धारण करके उसके उस 100 योजन चौड़े मुँह में घुस कर तुरंत बाहर निकल आए।
उन्होंने आकाश में खड़े होकर सुरसा से कहा- ”
माता! देवताओं ने तुम्हें जिस कार्य के लिए भेजा था,
वह पूरा हो गया है।
अब मैं भगवान श्री रामचंद्र जी के कार्य के लिए अपनी यात्रा पुन: आगे बढ़ाता हूँ।”
सुरसा ने तब उनके सामने अपने वास्तविक रूप में प्रकट होकर कहा-
“महावीर हनुमान!
देवताओं ने मुझे तुम्हारे बल और बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए ही यहाँ भेजा था।
तुम्हारे बल-बुद्धि की समानता करने वाला तीनों लोकों में कोई नहीं है।
तुम शीघ्र ही भगवान श्रीरामचंद्र जी के सारे कार्य पूर्ण करोगे। इसमें कोई संदेह नहीं है।
ऐसा मेरा आशीर्वाद है।”