
भीगे बादाम
बादाम छीलते हुए रीता ने दो बादाम चुपके से अपने मुंह में रख लिए….
जब वो पति राधे को दूध के साथ बादाम देने गई तो बादाम देखते ही अम्मा जी बिफर पडी
बादाम तो मैने पूरे भिगोए थे फिर लला को कम क्यों दे रही हो❓
रीता की काटो तो खून नहीं वाली हालत हो गई, कंपकपाती आवाज मे बोली:-
वो वो अम्मा जी छीलते हुए नीचे गिर गए थे अब भला वो बादाम कैसे इन्हें दे देती❓
अम्मा जी की शंकित नजरें उसे अंदर तक बेध रही थी
तुम्हारे पीहर से नहीं आती बादाम की बोरी जो नूं ही गिराती फिरती हो❓
रीता भी मन के चोर को छुपाते हुए बर्तन उठाने के बहाने वहां से खिसक गई…..
रसोई मे झूठे बर्तन रखते हुए मायके के नाम से उसकी आंखें भर आई……………..
वहां ऐसा भेदभाव नही था….
यहां अम्मा जी को लगता था,जितनी भी ताकत की अच्छी चीजें हैं वो मर्द लोगों के लिए हैं क्योंकि उन्हें घर से बाहर जा कर पैसा कमाने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है…..
औरतों का क्या❓
चौका बर्तन मे कैसी मेहनत ससुर जी थे नही इसलिए अम्मा भी घर के मर्दो की कैटीगरी मे ही आती थी…
ले दे कर एक उसे ही औरत का दर्जा था वो सोच रही थी कि अगर राधे जी भी उसका साथ ना देते तो जिंदगी नर्क हो जाती
काम करते दिन कैसे निकल जाता है पता ही नहीं चलता…..
रात का खाना बर्तन निपटा कर कमरे मे आई तो राधे जी उसका इंतजार कर रहे थे
गले लगा कर रीता से बोले:-
तुमहारे लिए कुछ लाया हूं और मुस्कराते हुए बादाम का पैकेट रीता के हाथों मे रख दिया….
तुम्हें भीगे बादाम बहुत पंसद हैं ना अलग से भिगो कर खा लिया करो….
राधे जी की बातों ने उसे प्यार के सरोवर मे अंदर तक भिगो दिया था बिल्कुल भीगे बादामों की तरह………..
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