
भगवान राम और भरत का प्रेम
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एक बार जब भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता जी के साथ चित्रकूट पर्वत की ओर जा रहे थे। चित्रकूट पर्वत की राह बहुत ही पथरीली और कंटीली थी, रास्ते पर चलते हुए भगवान श्रीराम के चरणों में एक कांटा चुभ गया। लेकिन वे दुखी नही हुए और न ही क्रोधित हुए बल्कि हाथ जोड़कर धरती मां से एक विनती करने लगे।
भगवान श्री राम बोले – माँ मेरी एक विनम्र प्रार्थना है आपसे । धरती माता बोली – प्रभु प्रार्थना नही, क्या आदेश है, यह बताइए। भगवान श्री राम विनम्र भाव से बोले-‘मां, मेरी बस यही विनती है की जब भरत मेरी खोज में इस रास्ते से गुजरे, तो तुम नरम हो जाना। कुछ पल के लिए अपने आंचल के ये पत्थर और कांटे छुपा लेना। मुझे कांटा चुभा सो चुभा, पर मेरे भरत के पांव में कांटा मत चुभाना।
भगवान श्रीराम के इन बातों को सुनकर धरती माँ दंग रह गई। धरती मां ने पूछा -भगवन्, क्षमा चाहती हूं, पर क्या भरत आपसे अधिक कोमल और सुकुमार हैं ? जब आप इतनी सहजता से सब सहन कर गए, तो क्या भरत नही सहन कर पाएंगे? फिर उनको लेकर आपके मन में ऐसी व्याकुलता क्यों ?
श्रीराम बोले’ – नहीं नहीं… माता। आप मेरे कहने का मतलब नही समझीं। भरत को यदि कांटा चुभा तो वह उसके पांव को नही , उसके ह्रदय को चोट कर देगा।’
ह्रदय को चोट? ऐसा क्यों भगवन ? ‘, धरती मां ने जिज्ञासा के स्वर में कहा।
भगवान धरती माता से बोले- माते, भरत अपनी पीड़ा स़े नही बल्कि यह सोचकर की इसी पथरीली और कंटीली राह से मेरे भाई राम गुजरे होंगे और ये कांटे और पत्थर उनके पांव में भी चुभे होंगे। यह सोचकर ही घबरा जायेगा और व्याकुल हो जाएगा। मेरा भाई भरत कल्पना में भी मेरी पीडा स़हन नही कर सकता, इसलिए उसके आते समय आप कमल के पंखुड़ियों जैसी कोमल बन जाना…। ताकि उसके पांव में थोड़ी सी भी कांटा और पत्थर न चुभे।
संदेश : इसीलिए कहा गया है की रिश्ते खून से नही, परिवार से नही, समाज से नही, मित्रता से नही, व्यवहार से नही , बल्कि रिश्ते बनते है सिर्फ और सिर्फ ‘एहसास’ से। और निभाए भी जाते है सिर्फ और सिर्फ ऐहसास से। जहां एहसास ही नही, आत्मीयता ही नही .. वहां अपनापन कहां से आएगा? वहां रिश्ता कहां से बनेगा ?
🙏🙏🌹🌹 जय श्री राम 🙏🙏🌹🌹