🕊️ “धर्म, द्वंद और डर” — एक स्त्री की आँखों से देश की सच्चाई 🕊️
…….
आप सभी से एक मार्मिक और विचारोत्तेजक लेख पढ़ने का अनुरोध करता हूँ, जिसे मेरी पत्नी सुप्रिया मिश्रा जी ने उसी समय यात्रा के दौरान अपने मन के गहरे भावों से लिखा है।
ऑपरेशन सिंदूर की पृष्ठभूमि और पहलगाम की वीभत्स घटना ने समाज में धर्म के नाम पर फैलते भय, द्वंद और असहजता को जिस तरह जन्म दिया है, उसे सुप्रिया जी ने एक आम नागरिक, एक बेटी, एक पत्नी और एक संवेदनशील लेखिका के रूप में बेहद सहजता से शब्दों में पिरोया है।
इस लेख में न केवल आतंकवाद की क्रूरता का चित्रण है, बल्कि यह भी दर्शाया गया है कि कैसे ऐसी घटनाएं आम जीवन में विश्वास और भाईचारे को तोड़ने का काम करती हैं। एक होटल का नाम, एक रंग, एक चेहरा — सबकुछ संदिग्ध लगने लगता है। पर फिर भी, उम्मीद की किरण उसी जगह पर दिखाई देती है जहां एक गणेश प्रतिमा दिल को सुकून देती है।……. यह सिर्फ एक लेख नहीं, आज के समय की सच्चाई का आईना है।
खौफ पहलगाम का और तमन्ना होटल
—————————————————
23 अप्रैल की सुबे लगभग सात सवा सात बजे मैं अपने मम्मी पापा के साथ लखनऊ के लिए जा रही थी,
हमारी गाड़ी पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे पे पूरी रफ़्तार के साथ आगे बढ़ रही थी, मेरी मुठ्ठियों में पड़ा मोबाइल पिछले पांच छः घंटों से सिर्फ लैन्ड लाइन फोन की भूमिका में था, सिर्फ़ आने वाली काल ही रिसीव की गयी थी, सामने की सीट पे बैठे पापा न्यूज पेपर में आंखें धसाए भावुक स्वर में- हे प्रभु बड़ी वीभत्स घटना
मैं -पापा को सुन चौककर -क्या हुआ पापा???
पापा- मेरी बात को अनसुना कर पेपर पढ़ने में रत
मैनें फिर अपना मोबाइल आन किया ज्यों ही मैं फेसबुक पे गयी एक तस्वीर अचानक मेरी आंखों के सामने एक मृत शरीर के पास एक सत्ताईस, अट्ठाईस साल की लड़की बेसुध सी,उस पोस्ट पे मात्र निश्शब्द लिखा, मैं कुछ समझ नहीं पायी, मैनें उत्सुकतावश आगे स्क्रालिंग की दो चार और पोस्ट कुछ ऐसी ही दिखी,साथ क्रंदन,रूदन का वीडियो, मैनें झट उस पोस्ट के नीचे के कमेन्ट्स को पढ़ना शुरू किया, मुझे कुछ कुछ समझ आया कश्मीर के किसी पहलगाम हिस्से में कुछ हुआ, मैं पूरा किस्सा समझनें के लिए यूट्यूब पे गयी और सर्च में पहलगाम न्यूज टाइप किया, एक रिपोर्टर हाथ में माइक लिये चिल्ला रहा -आतंकवादियों द्वारा धर्म पूछ चलायी गयी ताबड़तोड़ गोलियां,
कलमा न पढ़ पाने पे चलायी गयी ताबड़तोड़ गोलियां,
तभी पापा झटके पीछे मुड़कर व्रक दृष्टि से मुझे देखते हुए
अरे बेटा आवाज धीमी करके न्यूज सुनो,
मैं झट से भाप गयी कि सामने सीट पे बैठे पापा की मस्तिष्कीय चेतना एवं वक्र दृष्टि मुझे ये समझाने की कोशिश कर रही कि सामने ड्राईविंग सीट पे एक मुस्लिम ड्राइवर है,(जबकि पप्पू उर्फ अबरार बतौर ड्राइवर लगभग दस साल से हमारे परिवार के साथ है)
मैं फुर्ती के साथ मोबाइल धीमी करती और चुपचाप सुनती शुभम द्विवेदी, विनय बरनवाल जैसे अनगिनत निर्दोष नामों को जो आतंकवादियों के गोलियों का शिकार हुए,मेरा आहत मन उन तमाम मां, बहनों पत्नियों का रूदन सुनने में असमर्थ मेरी अंगुलियां स्वत ही मोबाइल बंद कर देतीं,पर मेरा दुखित मन चिन्तन की मुद्रा में
हे प्रभु धर्म के नाम इतनी कट्टरता, सिर्फ हिन्दू होने के नाते,कलमा न पढ़ पाने के कारण गोलियों से भून दिया,
कैसे दुर्दान्त दैत्य थे वो लोग???
इतनी क्रुरता,निर्दयता भला कौन से धर्म का मार्ग दिखाती है,
इधर हमारी गाड़ी लखनऊ की ओर बढ़ रही, मेरी दोनों आंखेंशीशे से टुकर टुकर बाहर की ओर देख रहीं, वास्तव में ये आंखें अब बाहर की ओर के लोगों को नहीं देख रहीं,देख रहीं थीं सड़क पे चलते तमाम हिन्दू, मुसलमान,कही मंदिर,कही मस्जिद, दरअसल एक धर्म के नाम पे दूसरे धर्म की नृशंस हत्या हुई,तो स्वाभाविक सी बात है उस धर्म को लेके मन में असुरक्षा,भय तो उत्पन्न होगा ही,,वही दूसरी तरफ मेरी समझदार आंखे झट ड्राइविंग सीट पे बैठे पप्पू भैय्या उर्फ़ अबरार को देख हिन्दू मुस्लिम भाई चारे को देखने लगतीं,अब मन कभी हिन्दू मुस्लिम भाई चारे का प्रतिनिधि बन सोचता तो वही दूसरी तरफ फिर मेरा ही तर्क पूर्ण मन पहलगाम आतंकवाद में दिखाए गये इस्लामिक कट्टरता के हर पक्ष का अध्ययन करने लगता,बस इसी उहापोह के बीच हमारी गाड़ी गोमती नगर स्थित प्रकाश नेत्रालय के सामने पहुंचती, जहां लगभग दोपहर एक बजे तक मम्मी के आंख के मोतियाबिंद का सफल आपरेशन होता, क्योंकि अगले दिन मम्मी को सुबे ही डाक्टर को दिखाना था,तभी हमने जल्दी में वही निकटस्थ एक तमन्ना होटल में एक रूम ले लिया, चूंकि जैसी मनःस्थिति जैसी होती है वैसी ही यथास्थिति होती है,
अब हम सभी जैसे ही उस रूम में पहुंचते
थोड़ी ही देर बात मम्मी पापा से _अरे आप कुछ ध्यान से देखें
पापा_फक्कड़ी अंदाज में क्या ध्यान देना है , तुम फिर कुछ दिमाग लगा रही
मैं चौंक कर _अरे पापा यार स्वर को खींचते हुए तमन्ननना होटल
मम्मी _वही हम भी समझा रहें तमन्ना होटल
पापा _क्या तमन्ना तमन्ना सीधे बोलो न
मैं आंख निकाल पापा को देखती अरे पप्पा तमन्ना होटल नाम देखिये किसका होटल???
पापा _अरे हम लोग काश्मीर में नहीं अपने पड़ोसी जनपद लखनऊ में हैं भयी,और हम लोग आये भी तो अबरार के साथ
मैं _ हां पापा आप सही कह रहे पर परिस्थिति ही ऐसी सोच उत्पन्न कर रही जो तमन्ना नाम आज अजात शत्रु सा
लग रहा,आप सोचिए पापा हिन्दूओं को आईडेंटिफाई करके मारा गया,कलमा न पढ़ पाने पे मारा गया,
तो every thing is possible
पापा _ तुम ठीक कह रही हो पूरे देश की स्थिति संवेदनशील है,और ऐसे हालात हैं तो सतर्क ता तो बरतनी ही चाहिए,
मम्मी _ अरे मुझे तो रिसेप्शन पे ही वो काले कपड़े वाले लड़के को देख कुछ असहज लगा, रिसेप्शन के आस पास सभी काले कपड़े में थे
मैं और पापा,मम्मी को देख चिल्लाते हुए _अरे मम्मी अब रंग पे न शक करो,पूजा में जब नवग्रह बनता है तो उसमें भी तो काला रंग प्रयोग होता है , खैर ऐसी संवेदनशील स्थित में सतर्कता तो आवश्यक ही है,
पापा – तो क्या करें होटल छोड़ दे अब थोड़ा नुकसान ही होगा और क्या
पर हम मध्यम वर्गीय लोग लक्ष्मी जी को सहेजने की कला से भली भांति परिचित होते हैं
मैं स्वयं में साहस भरती हुई – पापा चलिए बाहर पता करते है किसका होटल है, फिर हम दोनों एक दूसरे को देख हल्के से मुस्कुराते हुए,प्रभु ये कैसी विकट विषम परिस्थिति आ गयी ,
ज्योंहि हम बाहर निकलते इधर उधर देखते अचानक मेरी नजर होटल के ऊपरी छोर पे बनी गणपति बप्पा की प्रतिमा पे गयी, मैं पापा को ऊपर की ओर दिखाते हुए,
फिर हम पिता पुत्री एक निश्चिंत मुद्रा में होटल में पुनः प्रवेश करते,
पर मन में एक विचार
लगातार कौंधता जा रहा
धर्म तो प्रेम,दया, परोपकार, भक्ति, का रूप है
वही दूसरी तरफ़ धर्म के नाम पे इतनी बर्बरता
इतनी क्रूरता,
तो ऐसी स्थिति में सामान्य नागरिक के मन में निस्संदेह भय घेरेगा, भाईचारे की भावना वाला भाग शिथिल पड़ेगा
,रंग और लिबास शंका कुशंका के घेरे में आयेगें
और फिर द्वेष,द्वन्द की भावना की वृत्ति का उदय होना स्वाभाविक ही है,
( अंजलि मिश्रा )