
*सम्पादकीय*
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾
*खबर सबको थी मेरे कच्चे मकान की*–!!
*फिर भी लोगों ने दुआ मे बरसात मांग ली*—??
ज़िन्दगी की शाम एक निश्चित प्रारब्धिय खेल है हर किसी को उस मुकाम तक जाना ही जाना है चाहे राजा हो या रंक हो!
जीवन अनसुलझा रहस्य है अवतरण दिवस से लेकर मरण दिवस तक हर आदमी उस अदृश्य सत्ता की निगाह बानी में ही हर लम्हा गुजारना है!
चाहत की बस्ती में स्वार्थ का सानिध्य पाकर अहम के वहम से ग्रसित अपनत्व की गहरी जिजिप्सा की मनहूस छाया में माया के वशीभूत हर इन्सान मान सम्मान स्वाभिमान के झूठे आडम्बर में फस कर अपने मूल का समूल नाश कर लेता है!
जब की सभी को पता है परम सत्ता के दरबार में जाते समय खाली हाथ ही कर्मो की सौगात लेकर जाना है!
खाली हाथ रोते हुए ही माया की महानगरी में पश्चाताप की पारिवारिक परम्परा में शामिल होना है!,
शनै शनै वक्त की चहल कदमी के बीच जैसै जैसे उम्र का कारवां आगे बढ़ता गया वादों की बुनियाद पर मिले जीवन के सार को हर कोई भूलने लगता है !
जब की इस नश्वर संसार मे आने से पहले मालिक के कायनाती ब्यवस्था में सबसे उत्तम योनि मानव योनि में आने के लिए छटपटाता जीव शर्तों की हर विधा को स्वीकार कर पुनः वापसी के लिए संकल्पित होकर मिट्टी की काया में प्रवेश पाता है!विधाता के बनाए इस महत्वाकांक्षी संसार मेंआपार धन सम्पदा के मोह में विछोह के वरण तक अज्ञानता की वहशी हवा इस कदर प्रभावी रहती है की परमात्मा के मिलन के नैसर्गिक रास्ते को ही मायावी मिट्टी के पुतले में समाई आत्मा भूल जाती है।
आत्मीय ज्ञान इस आडम्बर भरी दुनियां में जिसको भी हो गया उसके सुखद भविष्य में अप्रतिम योगमाया की वलिष्ठ छाया मिट्टी की महा विनासी काया को मोहमाया से ग्रसित नहीं कर पाती!
इस आनी जानी दुनियां से मुक्ती का राह प्रशस्त स्वयं होने लगता है!
चौरासी लाख योनियों के वरिष्टता क्रम में प्रमुखता को प्रादुर्भावित करने वाला मानव रुपी जीव जब तक इस मिथ्या जगत के अभि शापित रहस्य को समझता तब तक उम्र की सफ़ीना वक्त के समन्दर में भयंकर त्रासदी की शिकार हो चुकी होती है!
अपना और पराया के मायावी स्वरूप में उलझा वैरागी मन अनुरागी बन तब तक अज्ञानता व कलुषित विचार से प्रभावित होकर सम्मोहन की शर्तों के बीच भविष्य को सुधारने के लिए दिन रात धनलक्ष्मी को बन्धक बनाने का खेल करता रहता है जब तक जीवन की मार्ग दर्शक इन्द्रियां शिथिल होकर परागमन का सन्देश नही देने लगती!समय की संगदिली देखिए एक दिन खुद का कमाया धन सम्पदा विपदा का कारण बन जीवन के आखरी निवारण के लिए घातक बन जाता है!
मानव शरीर परमात्मा ने सद्गुण से भरपूर कर इस लिए दिया की बिगड़े प्रारब्ध को सुधारने के साथ ही कल्याणकारी, परोपकारी, भावना के साथ मानवीय मूल्यों को स्थापित कर नवसृजन की श्रृंखला को सम्बृधि प्रदान करें!लेकिन अहंकारी परिवेश ने दुर्गुणों को इस कदर अवतरित होते ही समाहित कर देता है की विधाता के कायनाती ब्यवस्था में आस्था का प्रतिपादन निषिद्ध हो जाता है।
वर्तमान जिस तरह से मानवीय मूल्यों के ह्रास का चल रहा है वह आने कल के साथ ही अपनों को समर्पित जीवन के आखरी सफर के दुरूह राहों के लिए कांटों भरा ही दिखाई दे रहा है।।
यह तो सभी को पता है अकेले आये थे अकेले जाना है!
तो फिर किस बात का मुगालता।जब तक सांस है तभी तक सभी से साथ हैं!
ऊर्जावान ज़िन्दगी के हर पल को स्नेह समर्पण के साथ मालिक के कर्मों पर विश्वास कर सम्भाव के साथ जीवों पर दया भाव समर्पित करते हुए परमसत्ता में विलीन होने के बाद फिर कभी वापसी मानव तन होगी या नहीं की सोच को सम्बृधि प्रदान करते आगे बढ़े अन्त सभी का होना है।
एक दिन सब कुछ छोड़कर जाना है।
सत्कर्म को साथी बनाए वहीं साथ जायेगा बाकी तो सब कुछ यहीं रह जायेगा।
सबका मालिक एक 🕉️साईं राम🙏🏾!————
जगदीश सिह सम्पादक राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत 7860503468