
“गरीबी की मार और टूटी छत तले जिंदगी”
प्रतापगढ़ जनपद के डेरवा क्षेत्र के पास चेतमन का पुरवा ग्राम सभा में रहने वाले विनोद तिवारी का परिवार इस वक्त ऐसी मजबूरी और बेबसी में जी रहा है, जिसे शब्दों में बयां करना आसान नहीं है।
बीमारी से जूझते विनोद तिवारी का चेहरा साफ कह देता है कि जिंदगी उनके लिए अब रोज़ की लड़ाई बन चुकी है। जर्जर हो चुका घर, टूटती छत, गिरती दीवारें और भीतर फैली नमी—ये सब मानो उनकी लाचारी का आईना बन गए हैं। ऐसे घर में रहना, जिसमें जानवर भी रहना पसंद न करें, इस परिवार की विवशता को और उजागर करता है।
विनोद तिवारी की पत्नी और उनके तीन बच्चों का जीवन भी इसी जर्जर मकान और बीमारी की मार से घिरा हुआ है। सबसे ज़्यादा दर्दनाक स्थिति उनकी बेटियों काजल और कोमल तिवारी की है। ये दोनों मासूम बेटियां समझ नहीं पा रही हैं कि वे अपने पिता की जिंदगी बचाने के लिए इलाज करवाएं या फिर अपने सिर से टपकती छत को थामें।
उनकी आंखों में आंसू और होंठों पर खामोशी, ये बयां कर देती है कि परिवार किस हद तक टूटा हुआ है। एक ओर पिता का इलाज अधूरा है, दूसरी ओर घर किसी भी वक्त गिर सकता है। गरीबी की इस आग में बेटियां अपने सपनों तक को जला चुकी हैं।
विनोद तिवारी की मजबूरी अब समाज और सरकार दोनों से सवाल करती है –
क्या इस देश में गरीब का सपना सिर्फ टूटी झोपड़ी और अधूरी दवाई तक ही सीमित रहेगा?
क्या ये मासूम बेटियां अपनी छोटी उम्र में अपने पिता की बेबसी का बोझ उठाने को मजबूर रहेंगी?
आज ये परिवार केवल दया या हमदर्दी नहीं, बल्कि सहायता और संवेदनशील कदमों की मांग करता है।
क्योंकि सच तो ये है कि इस टूटे घर और बीमारी की गिरफ्त से निकलना अकेले उनके बस की बात नहीं।
यह तस्वीर सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि उन तमाम गरीबों की है जिनकी आवाज़ शायद ही कभी सत्ता और समाज तक पहुंच पाती हं